Kavita Jha

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त्योहारों रीति रिवाजों वाली डायरी# लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -07-Nov-2022

अगले साल साम

"अरे! रानी रुक क्यों गई, जल्दी चल।"
सोनी ने उसे झकझोरते हुए कहा।
रानी एक टक सड़क के किनारे की मिट्टी को घूर रही थी।
"तू रुक एक मिनट मैं आ रही हूँ।"
"अब तू जा कहाँ रही है। पहले ही बहुत देर हो रही है हमें स्कूल से घर पहुँचने में।आज तो पक्का डाँट पड़ेगी।"

रानी सड़क पार कर मिट्टी को अपने हाथों में रख ऐसे खुश हो रही थी जैसे उसने कोई अनमोल खजाना पा लिया हो। फटाफट अपने बैग के एक हिस्से को खाली किया और उसमें मिट्टी रख कर बैग की चेन इस तरह लगाई कि मिट्टी उसके बैग में सुरक्षित रहे। फिर सोनी के पास आ कर बोली चल अब देर नहीं हो रही जो उसे बड़ी हैरत से देख रही थी आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने पूछा," तू इस मिट्टी को अपने स्कूल बैग में क्यों ठूंस कर लें आई, तेरा बैग गंदा नहीं होगा। आखिर तू इस मिट्टी का करेगी क्या?"
" अरे! सामा बना रहीं हैं ना मेरी मम्मी तो अच्छी मिट्टी नहीं मिल रही थी।यह मिट्टी तो बहुत चिकनी लगी , इससे बहुत ही बढ़िया सामा चकेबा बना देंगी मेरी मम्मी और भी बहुत सारे मिट्टी की चिड़ियां तोता मछली और ढ़ेर सारी चीजें बनाएंगी।"

सोनी बड़े ध्यान से रानी की बातें सुन रही थी।
"यह सामा चकेबा क्या होता है?"
"तुझे नहीं पता, यह राखी भाईदूज की तरह ही एक त्योहार होता है जो पन्द्रह दिन चलता है। भाईदूज से ही इसकी शुरुआत होती है और पूर्णिमा तक सामा खेला जाता है।"
दोनों सहेलियां बात करते हुए पैदल ही घर जा रही थी।
रानी रोज बस की खिड़की से सड़क किनारे पड़ी इस मिट्टी को देखा करती थी।
सोनी को रानी के बताए सामा चकेबा के बारे में जानने की इच्छा बढ़ रही थी। उसने पूछा ,"यह सामा चकेबा क्या है?"
"सामा कृष्ण भगवान की बेटी थी, जिन्हें खुद उनके पिता ने ही श्राप दिया जिस कारण वो चिड़ियां बन गई जब चुगला ने सामा की चुगली की थी। चकेबा सामा के भाई थे जिन्होंने अपनी बहन सामा को श्राप मुक्त करवाया। कहा जाता है कि कार्तिक मास में भाईदूज के समय सामा अपने मायके आती हैं और पूर्णिमा वाले दिन अपने ससुराल चली जाती हैं।
मुझे तो यह त्योहार बहुत पसंद है।वैसे तो पूरे साल में अक्टूबर नवम्बर बहुत सारे त्योहार मनाए जाते हैं। दुर्गा पूजा दीवाली भाईदूज सामा छठ।"
"छठ तो मैं जानती हूँ, बिहारी लोग मनाते हैं।"सोनी ने कहा।
"हाँ बिहार का प्रसिद्ध त्योहार है छठ और बिहार के मिथिलांचल में सामा चकेबा धूम धाम से मनाया जाता है।"
"अच्छा सुन ना रानी मैं भी तेरे घर सामा खेलने आऊंगी।"
"जरूर आना।मम्मी के साथ बहुत सारी लेडिज लोग आती हैं बहुत सारे गीत गाती हैं। बहुत मजा आता है। "
सोनी शाम को रानी के घर गई और सबके साथ मिलकर उसने भी मिट्टी की छोटी छोटी चिड़िया बनाई। फिर तो उसको इसमें मजा आने लगा। सुबह प्रभात फेरी में रानी सोनी के साथ जाया करती और गुरुद्वारा में माथा टेकती । रात को सोनी अपनी मम्मी और दीदी के साथ रानी के परिवार के साथ उनका त्योहार सामा मनाते।
धर्म चाहे कोई भी हो पर सब मिलकर जब मनाते हैं तो उसकी बात ही अलग होती है।
पूर्णिमा वाले दिन दिन भर रानी सोनी के साथ गुरुद्वारा बंगला साहिब में रही और शाम से सोनी रानी के साथ सामा की विदाई की तैयारी करवाने में लगी रही। दोनों सहेलियों ने मिलकर बहुत ही सुन्दर रंगों से सभी मिट्टी के खिलौने सजाए। रात को जब पूजा के बाद सामा को चूड़ा गुड़ दही का भोग लगाया गया फिर सामा बदला बदली की गई और फिर गली में गाना गाते हुए सब आए सिर पर सामा का डाला उठाए और चुगला ब्रिंदावन जलाया फिर अंत में सामा को तोड़ा और भसाया  गया जो कि रानी के भाई ने किया यह सब देख सोनी की आंँखों से आंसू निकल गए।
रानी ने उसे समझाया,अगले साल फिर सामा आएंगी।
***
कविता झा 'काव्या कवि'

# लेखनी त्योहारों का सीजन प्रतियोगिता

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8 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:01 PM

Nice

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shweta soni

03-Mar-2023 10:25 PM

Very nice

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अदिति झा

03-Mar-2023 02:40 PM

Nice

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